धर्मराज आरती – ॐ जय धर्म धुरन्धर (Dharmraj Ki Aarti – Om Jai Dharm Dhurandar)
ॐ जय जय धर्म धुरन्धर,
जय लोकत्राता ।
धर्मराज प्रभु तुम ही,
हो हरिहर धाता ॥
जय देव दण्ड पाणिधर यम तुम,
पापी जन कारण ।
सुकृति हेतु हो पर तुम,
वैतरणी ताराण ॥2॥
न्याय विभाग अध्यक्ष हो,
नीयत स्वामी ।
पाप पुण्य के ज्ञाता,
तुम अन्तर्यामी ॥3॥
दिव्य दृष्टि से सबके,
पाप पुण्य लखते ।
चित्रगुप्त द्वारा तुम,
लेखा सब रखते ॥4॥
छात्र पात्र वस्त्रान्न क्षिति,
शय्याबानी ।
तब कृपया, पाते हैं,
सम्पत्ति मनमानी ॥5॥
द्विज, कन्या, तुलसी,
का करवाते परिणय ।
वंशवृद्धि तुम उनकी,
करते नि:संशय ॥6॥
दानोद्यापन-याजन,
तुष्ट दयासिन्धु ।
मृत्यु अनन्तर तुम ही,
हो केवल बन्धु ॥7॥
धर्मराज प्रभु,
अब तुम दया ह्रदय धारो ।
जगत सिन्धु से स्वामिन,
सेवक को तारो ॥8॥
धर्मराज जी की आरती,
जो कोई नर गावे ।
धरणी पर सुख पाके,
मनवांछित फल पावे ॥9॥
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(Dharmraj Ki Aarti – Om Jai Dharm Dhurandar)
Om Jai Jai Dharm Dhurandhar,
Jai Loktrata ।
Dharmraj Prabhu Tum Hi,
Ho Harihar Dhata ॥
Jai Dev Dand Panidhar Yam Tum,
Papi Jan Karan ।
Sukrti Hetu Ho Par Tum,
Vaitarani Taran ॥ 2 ॥
Nyay Vibhag Adhyaksh Ho,
Neeyat Swami ।
Paap Puny Ke Gyata,
Tum Antaryami .3.
Divy Drshti Se Sabke,
Paap Puny Lakhte ।
Chitrgupt Dwara Tum,
Lekha Sab Rakhte ॥ 4 ॥
Chhaatr Paatr Vastrann Kshiti,
Shayyabani ।
Tab Krpaya, Pate Hain,
Sampatti Manmani ॥ 5 ॥
Dvij, Kanya, Tulasi,
Ka Karwate Parinay ।
Vanshavrddhi Tum Unki,
Karte Ni:sanshay ॥ 6 ॥
Danodyapan-yajan,
Tusht Dayasindhu ।
Mrtyu Anantar Tum Hi,
Ho Keval Bandhu ॥ 7 ॥
Dharmraj Prabhu,
Ab Tum Daya Hraday Dharo ।
Jagat Sindhu Se Swamin,
Sevak Ko Taro ॥ 8 ॥
Dharmraj Ji Ki Aarti,
Jo Koi Nar Gave ।
Dharni Par Sukh Pake,
Manvanchhit Phal Pave ॥ 9 ॥