।। दोहा ।।
कहे संत संग्राम से ,हीरा हाथ में आया।
पड़ी नहीं पहचान , गाल गोपन में भाया।
भावत भावत भाविया ,लारे बचियो एक।
आया हीरा रा पारखी , रोयो मातो टेक।
अब कैसे होवे जग में जीवणो म्हारी हेली ,
लागा शब्द रा तीर ।
घर गया कामण लड़े म्हारी हेली ,
भाई गिणे नहीं भीर ।
ज्यांरा मुरसद घरे नहीं म्हारी हेली ,
नैणां में बरसे नीर ।
अब कैसे । …
कर जोड्या कामण खड़ी म्हारी हेली ,
ओढ़ण बहु रंग चीर ।
सतगुरु मिळिया म्हाने सागड़ी म्हारी हेली ,
आछी बंधाई धीर ॥
अब कैसे । …
काय रे बादळिया री छांवली म्हारी हेली ,
काँई नुगरां री प्रीत ।
काँई रे नाडोल्यां में नावणो म्हारी हेली ,
पड़ियो समद में सीर ॥
अब कैसे । …
हर दरियाव अथंग जळ भरियो हेली ,
हंसा चुगे नित हीर ।
शबद भळाऊ संग ले चलो म्हारी हेली ,
कह गया दास कबीर ।
अब कैसे । …
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भजन:- अब कैसे होवे जग में जीवणो
गायक :- गोपाल दास वैष्णव