।। दोहा ।।
ब्रज की रज चंदन बनी, माटी बनी अबीर।
कृष्ण प्रेम रंग घोल के, लिपटे सब ब्रज वीर।
सभा है भरी भगवन,
भीड़ पड़ी।
आवो तो आवो हरी ,
किसविध देर करी।
पति मोये हारी ये ना बिचारी,
कैसे सभा में आयेगी नारी |
बाजी लगी थी भगवन कपट भरी,
आवो तो आवो हरि,
किसविध देर करी।
सभा है ….
दुष्ट दु:शासन वंश विनाशन,
खेंच रह्यो मेरे बदन को वासन |
नग्न करण की चित में करी ,
आवौ तो आवौ हरि ,
किसविध देर करी।
सभा है ….
भीष्म पितामह, द्रोण गुरू देवा,
बैठे विदुरजी धर्म के खेमाँ |
सब की मति में , धुळ पड़ी,
आवौ तो आवौ हरि ,
किसविध देर करी।
सभा है ….
आ भी जाओ मत तड़पाओ ,
कृष्ण हमारी लाज बचाओ।
देवकरण की आदत बुरी ,
आवौ तो आवौ हरि ,
किसविध देर करी।
सभा है ….
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भजन :- सभा है भरी भगवन
गायक :- धरणीधर और रूपाली