भव बिन खेत खेत वन वाडी ,ए जल बिन रेत जलबाई।
बिन डोरी जल भरे कुआ पर ,बिना शीश की पनिहारी।
अरे सिर पर घडो घड़ा पर जारी,देह पकड़ कर तू चाली। २
विनती करू उतार बेवड़ो ,देखे धरयानी मुस्कानी । ओजी ।
भव बिन खेत। ……
अरे बिना रे जल के करे रसोई ,सासु नंनद की ओ प्यारी। २
देकत फुक बजे सालुखी ,चतुर नार की चतुराई। ओजी ।
भव बिन खेत। ……
अरे बिन धरनी एक बाग़ लगाया ,बना जला एक भेल चढ़ी। २
बिना शीश का था एक मिरगा ,पानी में रमता घडी घडी। ओजी ।
भव बिन खेत। ……
अरे धनिष बाण ले चढ़ीया शिकारी ,नांदन वे पर बाग़ चढ़ी।
मिरगा को मार जमी पर डाला ,ना मिरगा को चोट लगी। ओजी ।
भव बिन खेत। ……
अरे कहत कबीर बा सुन भाई साधु ,ये पद है कोई निर्वाणी।
इणीं भजन की करे खोजना ,वोही जन्त है सुरजाणीं। ओजी ।
भव बिन खेत। ……
भव बिन खेत खेत वन वाडी ,ए जल बिन रेत जलबाई।
बिन डोरी जल भरे कुआ पर ,बिना शीश की पनिहारी।
bina shish ki panihari video | gopal das vaishnav bhajan
भजन :- बिना शीश की पनिहारी
गायक :- गोपाल दास वैष्णव