हिमगिरि सुता रूप जगदम्बा
ब्रह्मचारिणी माते
दूजी ज्योतिर्मयी शक्ति तुम
भवभयहारिणि माते।।
बायें हाथ कमण्डलु शोभित
दायें हाथ जप-माला
जगत-जननि माँ ‘पार्वती’ ने
तपसी-रूप सम्हाला।
पति-रूप शिवजी को पाने
बहुत कठिन व्रत लीन्हाँ
सहस-वर्ष फल-फूल खायके
आप घोर तप कीन्हाँ।।
तीन-सहस-वर्षों तक सूखे
विल्व-पत्र तुम खाये
वर्षा-धूप-शीत सह तुमने
हाय महा दुःख पाये।
कई-वर्षों तक निराहार रह
निर्जल ही तप कीन्हाँ
हो प्रसन्न तब ‘महादेव’ ने
मनवाञ्छित वर दीन्हाँ।।
नाम पड़ा तबसे ‘ब्रह्मचारिणि’
हे सुखशांतिस्वरूपा
जो ध्याये मनवचन से तुमको
पड़े न वह भवकूपा।
हे जगजननी ‘ब्रह्मचारिणी’
कृपादृष्टि अब कीजे
श्रीचरणारविन्द की भक्ति
मोहि दया कर दीजे।।
तप-वैराग्य-त्याग-दात्री
हे दोष-निवारिणि माता
करूँ वन्दना मैं ‘अशोक’
हे तपस्चारिणी माता।।
हिमगिरि सुता रूप जगदम्बा
ब्रह्मचारिणी माते
दूजी ज्योतिर्मयी शक्ति तुम
भवभयहारिणि माते।।
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