राजस्थानी भजन कुल रो कारण सन्तों है नहीं देसी भजन लिरिक्स
गायक – प्रेम नाथ जी।
कुल रो कारण सन्तों है नहीं,
दोहा – सतगुरु बिन सोजी नहीं,
और सोजी सब घट माय,
रज्जब मक्की रे खेत में,
चिड़िया ने गम नाय।
कुल रो कारण सन्तों है नहीं,
सिंवरे ज्यारो सांई रे,
सिंवरू सिंवरू नर निर्भय भया,
देवा दरसिया घट माही रे,
कुल रो कारण सन्तो है नही।।
रिख इठियासी तापता,
एकण वन माही रे,
ज्यांमे तापे रे शबरी भीलणी,
त्यांमे अंतर नाही रे,
कुल रो कारण सन्तो है नही।।
किस्तूरी मूंगे मोल री,
राखे ज्यांरे रेही रे,
लखपतियों रे लादे नहीं,
वे कद रे मोलाई रे,
कुल रो कारण सन्तो है नही।।
भ्रांत पड़ी संसार में,
नर सुद्र कमाई रे,
उत्तम साहिब रो नाम है,
बाकी मिदम बणायी रे,
कुल रो कारण सन्तो है नही।।
भक्ति कमाई रविदास जी,
गुरु भेटिया मीरां बाई रे,
राणा जी परचो माँगियों,
गंगा आई कुंड माही रे,
कुल रो कारण सन्तो है नही।।
रामदास जी हर ने भेटिया,
खेडापे माही रे,
राजा प्रजा निवण करे,
साँची राम सगाई रे,
कुल रो कारण सन्तो है नही।।
कुल रो कारण सन्तो है नहीं,
सिंवरे ज्यारो सांई रे,
सिंवरू सिंवरू नर निर्भय भया,
देवा दरसिया घट माही रे,
कुल रो कारण सन्तो है नही।।
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