राजस्थानी भजन सन्तो देखों भजन री लहरी मैं तो सतगुरु शब्दों हेरी
सन्तो देखों भजन री लहरी,
दोहा – अमर लोक से बिछड़िया हंसा,
आय कर नगर बसाया,
आया जका घर भूलगा,
माया से मोह लगाया।
सन्तो देखों भजन री लहरी,
मैं तो सतगुरु शब्दों हेरी,
सन्तों देखो भजन री लहरी।।
उलटा पवन गिगन जाय लागा,
जहाँ देखी एक डेरी,
उण डेरी में म्हारा सतगुरु तापे,
जहाँ लागी लिव मेरी,
सन्तो देखो भजन री लहरी।।
उण डेरी में वृक्ष देखियो,
डाळ पान नहीं पेरी,
उण वृक्ष रे रूप न रेखा,
फळ लागे चौफेरी,
सन्तो देखो भजन री लहरी।।
उण डेरी में सात समन्द हैं,
नव सौ नदियाँ गहरी,
औलू दोलू रत्नागर सागर,
बीच में इमरत बेरी,
सन्तो देखो भजन री लहरी।।
उण डेरी में बाजा बाजे,
बाजे आठों पहरी,
मृदङ्ग ताल पखावज बाजे,
मुरली बाजे गहरी,
सन्तो देखो भजन री लहरी।।
अगम अगोचर निर्भय होया,
क्या पूछो गम मेरी,
कहत कबीर सा सुणो भाई साधों,
निर्गुण माळा फेरी,
सन्तो देखो भजन री लहरी।।
सन्तो देखो भजन री लहरी,
मैं तो सतगुरु शब्दों हेरी,
सन्तों देखो भजन री लहरी।।
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