ना जाने किसने बहकाये पवनसुत अब तक नहीं आए,
रात पल-पल बीती जाए पवनसुत अब तक नहीं आए।।
माता की मतिमंद हुई है हमें दिया बनवास,
मैंने अपने भेदभाव बिन नहीं छोड़ा बनवास,
राम अपना मन समझाये पवनसुत अब तक नहीं आए,
ना जाने किसने बहकाये पवनसुत अब तक नहीं आए।।
सुनो भ्रात हृदय से लगाओ यु बोले रघुवीर,
लक्ष्मण भैया उठ कर बोलो कहां लगा तेरे तीर,
नीर नैनन में भर आए पवनसुत अब तक नहीं आए,
ना जाने किसने बहकाये पवनसुत अब तक नहीं आए।।
अवधपुरी को जाऊं वहां क्या मुख लेकर जाऊं,
पूछे माता कौशल्या उनको क्या कुछ बतलाऊं,
राम मन ही मन पछताए पवनसुत अब तक नहीं आए,
ना जाने किसने बहकाये पवनसुत अब तक नहीं आए।।
लोग कहे नारी के खातिर भैया दिया मरवाई,
रोए रोए करके बिलाप फिर इधर-उधर जाएं,
राम तुलसी धोरे आए तुलसी धोरे आए,
पवनसुत अब तक नहीं आए,
ना जाने किसने बहकाये पवनसुत अब तक नहीं आए।।
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