सिंधु तरन, सिय-सोच हरन, रबि बाल बरन तनु ।
भुज बिसाल, मूरति कराल कालहु को काल जनु ॥
गहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक, बंक-भुव ।
जातुधान-बलवान मान-मद-दवन पवनसुव ॥
कह तुलसिदास सेवत सुलभ सेवक हित सन्तत निकट ।
गुन गनत, नमत, सुमिरत जपत समन सकल-संकट-विकट ॥१॥
हनुमान बाहुक के श्लोक का अर्थ
शरीर का रंग उदयकाल के सूर्य के समान है, जो समुद्र लाँघकर श्रीजानकीजी के शोक को हरने वाले, आजानुबाहु, डरावनी सूरत वाले और मानो काल के भी काल हैं।
लंका-रुपी गम्भीर वन को, जो जलाने योग्य नहीं था, उसे जिन्होंने निःसंक जलाया और जो टेढ़ी भौंहो वाले तथा बलवान् राक्षसों के मान और गर्व का नाश करने वाले हैं,
तुलसीदास जी कहते हैं – वे श्रीपवनकुमार सेवा करने पर बड़ी सुगमता से प्राप्त होने वाले, अपने सेवकों की भलाई करने के लिये सदा समीप रहने वाले तथा गुण गाने, प्रणाम करने एवं स्मरण और नाम जपने से सब भयानक संकटों को नाश करने वाले हैं।। १।।
स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रवि तरुन तेज घन ।
उर विसाल भुज दण्ड चण्ड नख-वज्रतन ॥
पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन ।
कपिस केस करकस लंगूर, खल-दल-बल-भानन ॥
कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति विकट ।
संताप पाप तेहि पुरुष पहि सपनेहुँ नहिं आवत निकट ॥२॥
हनुमान बाहुक के श्लोक का अर्थ
वे सुवर्ण-पर्वत (सुमेरु) – के समान शरीरवाले, करोड़ों मध्याह्न के सूर्य के सदृश अनन्त तेजोराशि, विशाल-हृदय, अत्यन्त बलवान् भुजाओं वाले तथा वज्र के तुल्य नख और शरीरवाले हैं, भौंह, जीभ, दाँत और मुख विकराल हैं, बाल भूरे रंग के तथा पूँछ कठोर और दुष्टों के दल के बल का नाश करने वाली है।
तुलसीदासजी कहते हैं – श्रीपवनकुमार की डरावनी मूर्ति जिसके हृदय में निवास करती है, उस पुरुष के समीप दुःख और पाप स्वप्न में भी नहीं आते।।२।।
झूलना
पञ्चमुख-छःमुख भृगु मुख्य भट असुर सुर, सर्व सरि समर समरत्थ सूरो ।
बांकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली, बेद बंदी बदत पैजपूरो ॥
जासु गुनगाथ रघुनाथ कह जासुबल, बिपुल जल भरित जग जलधि झूरो ।
दुवन दल दमन को कौन तुलसीस है, पवन को पूत रजपूत रुरो ॥३॥
हनुमान बाहुक के श्लोक का अर्थ
शिव, स्वामि-कार्तिक, परशुराम, दैत्य और देवता-वृन्द सबके युद्ध रुपी नदी से पार जाने में योग्य योद्धा हैं। वेदरुपी वन्दीजन कहते हैं – आप पूरी प्रतिज्ञा वाले चतुर योद्धा, बड़े कीर्तिमान् और यशस्वी हैं।
जिनके गुणों की कथा को रघुनाथ जी ने श्रीमुख से कहा तथा जिनके अतिशय पराक्रम से अपार जल से भरा हुआ संसार-समुद्र सूख गया। तुलसी के स्वामी सुन्दर राजपूत (पवनकुमार) – के बिना राक्षसों के दल का नाश करने वाला दूसरा कौन है ? (कोई नहीं)।।३।।
घनाक्षरी
भानुसों पढ़न हनुमान गए भानुमन, अनुमानि सिसु केलि कियो फेर फारसो ।
पाछिले पगनि गम गगन मगन मन, क्रम को न भ्रम कपि बालक बिहार सो ॥
कौतुक बिलोकि लोकपाल हरिहर विधि, लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खबार सो।
बल कैंधो बीर रस धीरज कै, साहस कै, तुलसी सरीर धरे सबनि सार सो ॥४॥
हनुमान बाहुक के श्लोक का अर्थ
सूर्य भगवान के समीप में हनुमान जी विद्या पढ़ने के लिये गये, सूर्यदेव ने मन में बालकों का खेल समझकर बहाना किया (कि मैं स्थिर नहीं रह सकता और बिना आमने-सामने के पढ़ना-पढ़ाना असम्भव है)।
हनुमान् जी ने भास्कर की ओर मुख करके पीठ की तरफ पैरों से प्रसन्न-मन आकाश-मार्ग में बालकों के खेल के समान गमन किया और उससे पाठ्यक्रम में किसी प्रकार का भ्रम नहीं हुआ।
इस अचरज के खेल को देखकर इन्द्रादि लोकपाल, विष्णु, रुद्र और ब्रह्मा की आँखें चौंधिया गयीं तथा चित्त में खलबली-सी उत्पन्न हो गयी।
तुलसीदासजी कहते हैं – सब सोचने लगे कि यह न जाने बल, न जाने वीररस, न जाने धैर्य, न जाने हिम्मत अथवा न जाने इन सबका सार ही शरीर धारण किये हैं।। ४।।
हनुमान बाहुक के श्लोक का अर्थ
भारत में पारथ के रथ केथू कपिराज, गाज्यो सुनि कुरुराज दल हल बल भो ।
कह्यो द्रोन भीषम समीर सुत महाबीर, बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो ॥
बानर सुभाय बाल केलि भूमि भानु लागि, फलँग फलाँग हूतें घाटि नभ तल भो ।
नाई-नाई-माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जो हैं, हनुमान देखे जगजीवन को फल भो ॥५॥
महाभारत में अर्जुन के रथ की पताका पर कपिराज हनुमान जी ने गर्जन किया, जिसको सुनकर दुर्योधन की सेना में घबराहट उत्पन्न हो गयी। द्रोणाचार्य और भीष्म-पितामह ने कहा कि ये महाबली पवनकुमार है।
जिनका बल वीर-रस-रुपी समुद्र का जल हुआ है। इनके स्वाभाविक ही बालकों के खेल के समान धरती से सूर्य तक के कुदान ने आकाश-मण्डल को एक पग से भी कम कर दिया था।
सब योद्धागण मस्तक नवा-नवाकर और हाथ जोड़-जोड़कर देखते हैं। इस प्रकार हनुमान् जी का दर्शन पाने से उन्हें संसार में जीने का फल मिल गया।। ५।।
गो-पद पयोधि करि, होलिका ज्यों लाई लंक, निपट निःसंक पर पुर गल बल भो ।
द्रोन सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर, कंदुक ज्यों कपि खेल बेल कैसो फल भो ॥
संकट समाज असमंजस भो राम राज, काज जुग पूगनि को करतल पल भो ।
साहसी समत्थ तुलसी को नाई जा की बाँह, लोक पाल पालन को फिर थिर थल भो ॥६॥
हनुमान बाहुक के श्लोक का अर्थ
समुद्र को गोखुर के समान करके निडर होकर लंका-जैसी सुरक्षित नगरी को होलिका के सदृश जला डाला, जिससे पराये शत्रु के पुर में गड़बड़ी मच गयी।
द्रोण-जैसा भारी पर्वत खेल में ही उखाड़ गेंद की तरह उठा लिया, वह कपिराज के लिये बेल-फल के समान क्रीडा की सामग्री बन गया। राम-राज्य में अपार संकट (लक्ष्मण-शक्ति) -से असमंजस उत्पन्न हुआ युग समूह में होने वाला काम पलभर में मुट्ठी में आ गया।
तुलसी के स्वामी बड़े साहसी और सामर्थ्यवान् हैं, जिनकी भुजाएँ लोकपालों को पालन
- किस्मत वालों को मिलता है मेहंदीपुर दरबार
- जबसे आया हू हनुमानजी के द्वार
- सालासर में बाबा का जो दरबार न होता
- मोरी माई के प्यारे हनुमान लाज मोरी राखियो
- श्री प्रेतराज चालीसा हिंदी लिरिक्स – जय जय प्रेतराज जग पावन महाप्रबल त्रय तापनसावन
- हनुमान मेरा रखवाला है बाबा राम नाम मतवाला है
- हनुमान जी मुझे ऐसा वर दो ऐसा घर दो
- फूंक दिया रे सोने की लंका दर के रूप विशाला
Atulit Bal Dhamam
Hem Shailabh Deham
Danuj Van Krishanum
Gyani Naam Magraganyam
Sakal Gun Nidhaman
Raghukul Priya Bhaktam
Vaat Jatam Namami Namami
Chhapaya
Sindhu Taran Siya Soch Haran Rabi Baal Baran Tanu |
Bhuj Bisaala Murti Karaal Kalhuko Kaal Janu ||
Gahan Dahan Nirdahan Lanka Ni Sank Bank Bhuv|
Jaatu Dhaan Balwana Maan Mad Dwan Pawan Sukh ||
Kah Tulsidas Sevat Sulabh Sevak Hit Santat Nikat
Gun Ganat Namat Sumirat Japat Saman Sakal Sankat Vikat ||1||
Swarna Sail Sankas Koti Rabi Tarun Tej Ghan |
Urr Bisaal Bhuj Dand Chand Nakh Braj Braj Tan ||
Ping Nayan Bhrukuti Karaal Rasna Dasnanan |
Kapis Kes Karkas Langoor Khal Dal Bal Bhanan||
Keh Tulsi Das Bus Jaasu Urr Marut Sut Moorti Bikat |
Santaap Paap Teh Purush Pahi Sapnehu Naahi Aavat Nikat ||2||
Jhoolna
Panch Mukh Chhamukh Bhrigu Mukhya Bhat Asur Sur Sarva Sari Samar Samrat Suro |
Bankuro Beer Birudait Birudawali Bed Bandi Badat Paijpuro ||
Jaasu Gunnath Raghunath Kah Jaasu Bal
Bipul Jal Bharit Jag Jaldhi Jhooro |
Duvan Dal Damanko Kaun Tulsis Hai
Pawan Ko Poot Rajput Ruro ||3||
Ghanakshari
Bhanuso Padan Hauman Gaye Bhaanu Man
Anumani Sisu Keli Kiyo Ferfaar So |
Paachhile Pagini Gam Gagan Magan Man
Kram Ko Na Bharam Kapi Balak Bihaar So||
Kautuk Biloki Lokpaal Hari Har Bidhi
Locanini Chaka Chaudhi Chittani Khabhar So |
Bal Kaidho Beer Ras Dheeraj Kai Sahas Kai
Tulsi Sarir Dhare Sabani Ko Saar So ||4||
Bharat Mein parath Ke Rath Kethu Kaipraj
Gajyo Suni Karu Raaj Dal Hal Bal Bho|
Kahyo Dron Bheesham Sameer Sut Mahaveer
Veer Ras Bari Nidhi Jaako Bal Jal Bho||
Baanar Subhaye Baal Keli Bhumi Bhaanu Laagi
Falang Falang Hete Ghaati Nabh Tal Bho|
Nayi Nayi Maath Jori Jori Hath Jodha Johi
Hanuman Dekhe Jag Jeevan Ko Phal Bho ||5||